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Friday, April 8, 2016

गीता सार!

पिता, अपने बेटे से: ओ बेवकूफ़, मैंने तुमको गीता दी थी पढ़ने के लिए क्या तुमने गीता पढ़ी? कुछ दिमाग में घुसा?

पुत्र: हाँ पिता जी, पढ़ ली और अब आप मरने के लिए तैयार हो जाओ (इतना कहते बेटे ने पिता की कनपटी पर तमंचा रख दिया)।

पिता: बेटा ये क्या कर रहे हो? मैं तुम्हारा बाप हूँ।

पुत्र: पिता जी, ना कोई किसी का बाप है और ना कोई किसी का बेटा। ऐसा गीता में लिखा है।

पिता: बेटा मैं मर जाऊंगा।

पुत्र: पिता जी शरीर मरता है, आत्मा कभी नही मरती। आत्मा अजर है, अमर है।

पिता: बेटा मजाक मत करो गोली चल जाएगी और मुझको दर्द से तड़पाकर मार देगी।

पुत्र: क्यों व्यर्थ चिंता करते हो? किससे तुम डरते हो? गीता में लिखा है - नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः
आत्मा को ना पानी भिगो सकता है और ना ही तलवार काट सकती, ना ही आग जला सकती। किस लिए डरते हो तुम?

पिता: बेटा, अपने भाई बहनों के बारे में तो सोच, अपनी माँ के बारे में भी सोच।

पुत्र: इस दुनिया में कोई किसी का नही होता। संसार के सारे रिश्ते स्वार्थों पर टिके हैं। ये भी गीता में ही लिखा है।

पिता: बेटा मुझको मारने से तुझे क्या मिलेगा?

बेटा: अगर इस धर्म युद्ध में आप मारे गए तो आपको स्वर्ग प्राप्ति होगी। मुझको आपकी संपत्ति प्राप्त होगी।

पिता: बेटा ऐसा जुर्म मत कर।

पुत्र: पिता जी आप चिंता ना करें। जिस प्रकार आत्मा पुराने जर्जर शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करती है, उसी प्रकार आप भी पुराने जर्जर शरीर को त्याग कर नया शरीर धारण करने की तयारी करें।

अलविदा।

शिक्षा - कलयुग की औलादों को सतयुग, त्रेतायुग या द्वापर युग की शिक्षा ना दें, क्योकि अकड़ हम सहते नहीं और भाव किसी को देते नहीं।

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